शनिवार, 1 जुलाई 2017

कुछ अनपढ़े पन्ने

किताबों के कुछ पन्ने बार-बार खुल जाते हैं
 कुछ वो जो मन से पढ़े गए हों
या फिर  वो जिन पर मोड़ पड़ गए हों
कुछ के बीच बुकमार्क लगे मिल जाते हैं
जो लगाए गए होते हैं याद रखने  के लिए
आगे पढ़े जाने के लिए
लेकिन  उन्हें  कभी पढ़ने का मौका नहीं मिलता
ऐसे ही किसी दिन दिख जाते हैं
पन्नों के बीच फँसे हुए, बिना अर्थ के....

साफ-सफाई करते हुए हाथ लग जाती हैं कुछ किताबें
किताबें जो कभी पढ़ी नहीं जातीं
बस संभालकर रख दी जातीं हैं
कि शायद कभी कुछ पढ़ना पड़ जाए
भले ही उसके पृष्ठ कट-पिट जाएँ
मलीन होते जाएँ
और धीरे-धीरे गुम होते जाएँ
फिर भी नहीं छोड़ा जाता उनका मोह

लेकिन कभी यूँ ही बैठे ठाले
साफ-सफाई करते हुए
अनचित्ते अनमने से
उनके पृष्ठों की कुछ पंक्तियों पर निगाह चली जाती है
और वो पंक्तियाँ मन से बातें करने लग जाती हैं
फिर...
फिर सहसा यूँ ही अधूरी अनपढ़ी छोड़ दी जाती हैं
दोबारा बड़े जतन से रख दी जाती हैं
अंधेरी अलमारियों में किसी कोने

ऐसी किताबें हों या ऐसे कुछ रिश्ते
जीवन भर संजोकर तो रखे जाते हैं
पर यूँ ही उनपर निगाहें नहीं जातीं
यूँ ही उनसे दो बातें नहीं की जातीं...